नजरो की अठखेलियों पर विराम लग जाता है, कदम अनायास ही ठिठक कर रुक जाते हैं, दूर से ही उच्च शिखर पर फहराते ध्वज का आर्कषण, उस ओर हठात खींच कर ले जाता है।और जब हम उसकी छाया में पहॅुच जाते हैं, तो एक असीम शान्ति का अनुभव होने लगता है, कुछ बात तो है कि, लोग इसके आकर्षण में बार बार चलें आतें हैं, और यह शान्ति, यहां हर बार बढ़ती ही जाती है, लोग आते हैं,ध्यान करते है़, अर्जी लगाते हैं, और जीवन पथ पर बढ़ने की नई उर्जा प्राप्त कर कर्म पथ पर लीन हो जाते है, बात हो रही है बिहार के मुजफ्फरपुर जिला के सकरा प्रखण्ड से होकर गुजरने वाली एन एच 28 के सटे डिहुली गांव स्थित त्राहि अच्युत आश्रम की,
इसका संबंध यूं तो, उड़ीसा के पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर से होने के अलावे, कइ एक बात ऐसी हैं, जो कदम कदम पर आपको, यहां ऐसा महसूस होगा कि हम पुरी स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर के सानिंध्य में है,
आश्रम के प्रांगण में, भगवान जगन्नाथ मंदिर के उपर लहराता शिखर ध्वज यूं तो करीब एक किलोमीटर दूर एन एच 28 स्थित निकटवर्ती पिपरी चौक से ही दिखाई पड़ने लगता है, लेकिन जब हम मंदिर परिसर में प्रवेश करते है, तो दीवारों पर दक्षिण शैली में बनी कलाकृति, उत्तर की इस भूमि पर एक अतिरेक आन्नद प्रदान करती है,
डिहुली गांव स्थित त्राहि अच्युत आश्रम परिसर में स्थापित इस मंदिर तक पहॅुचने का सड़क मार्ग अत्यन्त ही सुगम है, इसके सबसे निकटवर्ती शहरों में मुजफ्फरपुर एवं समस्तीपुर से इसकी दूरी लगभग पच्चीस किलोमीटर के आसपास है, वहीं रेल मार्ग से मुजफ्फरपुर समस्तीपुर रेलखंड के ढ़ोली रेलवे स्टेशन से करीब पांच किलोमीटर एवं दुबहा रेलवे स्टेशन से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर है ।
पर्यटन विभाग के धार्मिक स्थलों के मानचित्र पर इस मंदिर का कोई जिक्र नहीं है, लेकिन डिहुली गांव स्थित भगवान जगन्नाथ का यह मंदिर उत्तर बिहार का एक मात्र मंदिर है, इस मंदिर के बने हुए अभी ज्यादा वक्त नहीं बीते हैं, लेकिन इसकी बनावट, विशालता, एवं इस स्थल पर फैली शान्ति एवं स्वच्छता अभीभूत कर देता है ।
31 अक्टूबर 1992 को सबसे पहले गादी गृह का स्थापना किया गया, मात्र चार दशक में इसकी यशो गाथा लोगों के जुवानी ही प्रसार लेता रहा, प्रचार प्रसार से दूर इस आश्रम का उद्देश्य कभी प्रचार प्रसार करना, रहा भी नहीं,
साल में पांच बार मंदिर प्रांगण में विशाल कार्यक्रम का आयोजन होता है, जन्माष्टमी, राधाष्टमी एवं वैशाख कृष्ण पक्ष में अष्ट प्रहरी जन्मोत्सव के अलावे 31 दिसम्बर को स्थपना दिवस एवं फाल्गुन शुक्ल पक्ष में वार्षिक यज्ञ का आयोजन यहां बड़े ही धूम धाम से किया जाता है ।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के ठीक सामने यज्ञ मंडप बना हुआ है, दाहिने ओर वटगोस्वामी एवं उसके ठीक सामने सभा मण्डप है, यहां खास बात यह है कि आगन्तुक भक्त लोग वटगोस्वामी के समीप रेत यानि बालू पर ही बैठकर ध्यान करते हैं, और वटगोस्वामी की परिक्रमा करके अपने मन की बात को इष्ट देव तक पहॅुचाते हैं ,
भगवान जगन्नाथ मंदिर डिहुली का निर्माण भुवनेश्वर के कारीगरो के द्वारा किया गया है,दक्षिण की शैली में बने इस आधुनिक मंदिर में नक्काशी का काम बहुत ही खुबसूरती के साथ किया गया है, मंदिर की हर एक प्रतिमा जीवन्त हो गई है, मंदिर के मुख्य द्वार के ठीक सामने अरूण स्तम्भ है , सिंह द्वार पर द्वारपाल जय विजय, भैरव जी के साथ सदैव उपस्थित हैं,
मंदिर के भीतरी परिसर में प्रवेश करते ही सबसे पहले गरूड़ स्तम्भ दिखाई देता है, मंदिर के प्रथम खण्ड यानि प्रार्थना कक्ष के दीवारों पर भगवान श्री कृष्ण के जीवन से घटित घटनाओं का जीवन्त चित्रण किया गया है, जन्म के उपरान्त वसुदेव के द्वारा श्री कृष्ण को यमुना पार करके नन्द गांव पहुंचाने की घटना के अलावे, पूतना वध, बकासुर वध, कलिया नाग का नाथना, गोपियों के यमुना स्नान के अलावे , श्री कृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाने ,एवं श्री कृष्ण के मथुरा गमन तक की घटनाओं का जीवन्त चित्रण किया गया है,इन चित्रों के उपर भी काली नव ग्रह, नव दुर्गा, आदि देवी देवताओं की मनोहारी प्रतिमा सज्जित है,
डिहुली में स्थापित भगवान जगन्नाथ मंदिर के गर्भ गृह में बाईं ओर बलभद्र , बीच में माता सुभद्रा, एवं उसके दाहिने ओर भगवान कृष्ण की मूर्ति एवं सुदर्शन चक्र स्थापित है, सभी मूर्तियां नीम की लकड़ी से बना हुआ है, और इन मूर्तियों को पुरी के बालाकोट से ही बनाकर भगवान जगन्नाथ के मंदिर में स्थापित किया गया है ।
भगवान के लिए रात्रि विश्राम हेतु बजाप्ता शयन कक्ष भी बनाया गया है, लाल रंग का चादर माता सुभद्रा, हरा बलभद्र, एवं पीले रंग के चादर का बिछावन भगवान कृष्ण के लिए रखा गया है । मंदिर में पूजा का विशेष विधान है,बारी बारी से भक्त गण यहां आते रहते हैं, जो भी भक्त यहां आते हैं वे कम से कम चौबीस घंटा वहां बिताते हैं, नित्य पूजा के उपरान्त एक विशेष प्रकार का पकवान प्रसाद के रूप में भक्तों के बीच वितरित किया जाता है, जिसे दालमा कहा जाता है, जो मीठा खिचड़ी की तरह होता है,
गादी गृह मंदिर परिसर का अहम भाग है, यहां भक्तों की रक्षा हेतु सूत्र बंधन का विधान है, भक्तों को महापुरूष के द्वारा मंत्र प्राप्ति एवं दिशा निर्देश दिया जाता है, तब जाकर सूत्र बंधन की प्रक्रिया पूरी होती है, और यह सब गादी गृह में ही संपन्न होता है ।